*शहर में आज भी जिंदा है सामाजिक सौहार्द,मेल-मिलाप का पर्व, एक दूसरे के गले मिले लोग
*उरई(जालौन)*। रक्षाबंधन के आठ दिन पहले श्रावण माह की नवमीं को घरों में पत्तों से बने दोनों में कजलियां बोई गईं। हर दिन दूध, नर्मदा जल से सींचकर उनकी सेवा कर सुख समृद्धि
और धन-धान्य की मंगल कामना हुई।सोमवार को भाद्र पक्ष की प्रतिपदा तिथि पर उनका विसर्जन कर कजलियां पर्व मनाया जा रहा है।
*कजलियां मूलत:* बुंदेलखंड की परंपरा रही है जो कि पर्व के रूप में हमारे समाज में सम्मलित हो गई। हरी-पीली व कोमल गेहूं की बालियों को आदर और सम्मान के साथ भेंट करने एवं कानों में लगाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है।आज उरई में बड़ी धूम धाम से मना कजलिया पर्व।रामकुण्ड और माहिल तालाब में लगा मेला। सोमवार को दोपहर से तालाबों व नदियो के तटों में कजलियां विसर्जन का मेला लग गया है। तालाब के चारों ओर खरीददारी के लिए दुकानें सजी थी वहीं युवा व महिलाएं झूले का लुफ्त उठा रहे हैं। इस दौरान सभी राजनैतिक दल के सभी नेताओ ने इस दौरान एक दूसरे के कानों में कजलियां लगाकर सुख समृद्घि की कामना कर पुराने द्वेष व बैर को भूलने का संकल्प किया। मेल मिलाप के इस पर्व पर लोगों ने एक दूसरे को कजलियों का आदान प्रदान कर किया। जो बराबरी के हैं, वे गले लग रहे और जो बड़े हैं वे छोटों को आशीर्वाद दे रहे हैं।
*बच्चों में रहा खासा उत्साह*
कजलियों को लेकर बच्चों में खासा उत्साह देखने मिल रहा है। बच्चों को कजलियां देने के बाद शगुन के रूप में बड़ों ने उन्हें रुपए-पैसे दे रहे हैं। इसके अलावा जिनके परिवारों में पूरे साल के भीतर किसी की मृत्यु हुई है, सुख दुख बांटने, मेल-मिलाप के लिए नाते-रिश्तेदार उनके घर पहुुंच रहे हैं।
*सुरक्षा के रहे पुख्ता इंतजाम*
कजली मेला पर्व पर उरई के माहिल तालाब पर दूर दूर से महिलाये अपने घर की भुंजरियां विसर्जित करने आती है। जिससे माहिल तालाब में महिलाओ का जमावड़ा लग जाता है।उनकी सुरक्षा हेतु एंटी रोमियो स्क्वैड की प्रमुख व् महिला थानाध्यक्ष नीलेश कुमारी अपने दल बल के साथ उपस्थित रही जिससे महिलाओ को कोई दिक्कत न हो।व् महिलाओ को सुरक्षा का अहसास हो।
*फ़ोटो परिचय- काजलियो के मेले का एक द्रश्य*
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