(विष्णु चंसौलिया की रिपोर्ट)08/02/19 उरई।, जालौन ।जीवन और मृत्यु तो एक दूसरे के अभिन्न साथी हैं क्योंकि मृत्यु शरीर के साथ ही जन्म लेती है ।
जगम्मनपुर में तालाब वाले महावीर जी के मंदिर पर चल रही श्रीमद् भागवत कथा में आचार्य अवधेश ने कृष्ण जन्म के पूर्व कंस के अत्याचारों से त्रस्त पृथ्वी एवं पृथ्वी पर रहने वाले प्राणियों की पीड़ा से भगवान के जन्म का योग बनने एवं भगवान के आश्रित रहने वालों के भव बंधन से मुक्त होने तथा वसुदेव जी द्वारा भगवान को सिर पर रख कर ले जाने से सभी बंधन बाधायें कट जाने तथा कन्या रूपी माया को सिर पर धारण करने से पुनः बंधन में जकड़े जाने का द्विअर्थी अद्भुत प्रसंग सुनाया। उन्होंने बताया कि जन्म और मृत्यु तो प्रत्येक जीव की लौकिक लीला है जो जन्मा है उसकी मृत्यु भी होगी क्योंकि मृत्यु तो शरीर के साथ ही जन्म लेती है और एक दिन शरीर को नष्ट करके जीव को अपने साथ ले जाती है अतः सरलता से सदकर्मों को करते हुए परोपकारी जीवन जीते हुए हमें परमात्मा में विलीन होना ही सार्थक है अर्थात संसार में सब मिथ्या है केवल मृत्यु ही सत्य है।
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