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शुक्रवार, 21 जून 2019

भागीरथ सेवा संस्थान कानपुर के बैनर तले रावतपुर गाँव में श्री श्री नर्मदेश्वर धाम में आयोजित श्री रामकथा के द्वितीय दिवस


वर्तिका कुशवाहा की रिपोर्ट

भागीरथ सेवा संस्थान कानपुर के बैनर तले रावतपुर गाँव में श्री श्री नर्मदेश्वर धाम में आयोजित श्री रामकथा के द्वितीय दिवस की  कथा में पूज्य पं प्रेम शंकर पाण्डेय जी के  द्वारा विभिन्न रामायणो के अधार पर रामकथा पर प्रवचन किया गया। जिसे दर्शको ने बहुत सराहा।
रामचरित मानस की प्रसंगिकता की चर्चा करते हुये कहा कि आज जो विश्व में अतांकवाद और धर्म के नाम पर सम्वेदन हीनता फैली हुयी है। वह मानस के उपदेशो को अपने आचरण में उतारने से अपने आप शांत हो जायेगी हर व्यक्ति यदि गाये के दूध का सेवन करे और भगवान राम के आदर्शो को अपने जीवन मे उतारे तो सभी विसंगतियां अपने आप दूर हो जायेगी मै तो चाहता हूं कि हर परिवार को एक गाय और एक रामचरित मानस की एक प्रति उपलब्ध करायी जाये तो समाज में एकता समानता समरसता स्थापित  हो जायेगी। मनुजता की सेवा विचार में सार्थकता लाने के लिये रामचरितमानस ही एक रास्ता है। उन्होंने बताया कि रामचरित मानस कलियुग वासियो के दैनिक जीवन के व्यावहारिक परिवर्तन देने वाला ग्रंथ है। साथ ही बताया कि मां पार्वती राम कथा सुननी चाहिए।तो शिव जी अति प्रशन्न होते है। उन्होने कहा कि राम कथा सुंदर करतारी, ससय विरह उडावन हारी। राम कथा विटप कुठारी, सादर सुनु गिरिराज कुमारी ।रामकथा जीने की कला सुनाती है। कथा सो सकल लोक हितकारी सुई पुछन चह शैलकुमारी। शिव जी ने सूत्र दिया तभी उन्हें रामकथा प्राप्त हुयी।बताया कि कलियुग का  प्रभाव राम चारित सुनने से जीवन में नही पडता साथ ही अभय और मोक्ष प्राप्त होता है। रामकथा पाने का रास्ता शिवचरित पढने के बाद ही प्राप्त होता हैं  शिव जी ने सर्वप्रथम राम चरित को अपने हृदय पर उतारा। जीवो के कल्याणार्थ उसी चरित को तुलसी के लिये उपलब्ध कर दिया है। शिव ने उनकी प्रत्येक चौपाई को मंत्रवध सिद्व कर दिया है। गोस्वामी तुलसी दास की मानस का प्रभाव केवल राम काव्य परम्परा में ही नहीं बल्कि गीता भागवत परम्परा में भी प्रारम्भ हो गया है। रामचरित मानस की दोहा चौपाई शैली को जनजीवन में इतना प्रभावित कर दिया है कि अब रामकथा की परम्परा के अतिरिक्त श्रीमद्भागवत कथा के व्यासों पर भी परिलक्षित होने लगा है।  रामचरित मानस मानव जीवन को दुःख के समय समबल देता हुआ सुख प्रदान करता है और सुख की स्थिति में मानव को कर्म सेवा वैराग्य की ओर प्रेरित करता है। तुलसी की राम की कथा का चरित्र राम बनने की प्रेरणा देता है। तुलसी ने राम को मर्यादा पुरूषोंत्तम बनाकर अपने काव्य में समन्वय बुद्धि और आदर्शों की स्थापना करके इतनी ऊंचाई प्राप्त की । मानस दुःख में सुख देता है। सम्पूर्ण मानव जाति को इसने राममय बनाया है। संकुचित दृष्टिकोण जड़ता का त्याग ही वास्तविक तीर्थ है। तुलसी ने कलिकाल के उदाहरण से भौतिकता और मूर्खता का चित्रण किया है। अपसंस्कृति से बचने के लिए तुलसी के साहित्य से बढ़ कर आज दूसरा कोई उपाय नहीं है।
कार्यक्रम का आरम्भ भागीरथ सेवा संस्थान के संयुक्त सचिव डी. एन. द्विवेदी (एडवोकेट) ने दीपशिखा को प्रज्वलित करके एवं अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर जनमानस के नित्य जीवन में योग के महत्त्व पर चर्चा करके किया।
इस कार्यक्रम में संस्थान की महासचिव डा. ललिता द्विवेदी, अध्यक्ष अमरनाथ पाण्डेय, महामंत्री शुशील कुमार बाजपेयी, कोषाध्यक्ष अजय पाण्डेय, रानी पाण्डेय, ममता पाण्डेय, जय पाण्डेय, अर्पित, धीरज, कृष्णकुमार वर्मा (कल्लू), दीपक पाण्डेय इत्यादि मौजूद रहे।

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