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गुरुवार, 20 फ़रवरी 2020

महाशिवरात्रि पंचनद के कालेश्वर की उपासना से नहीं रहता अकाल मृत्यु का भय

विष्णु चंसौलिया।

भगवान विष्णु को यही प्राप्त हुआ था सुदर्शन चक्र
पांडवों का अज्ञातवास में मिला था अजेय होने का वरदान

उरई।जालौन। पंचनद पर सदा निवास करने वाले भगवान शिव के अति दुर्लभ विग्रह महाकालेश्वर की पूजा करने से अकाल मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है एवं प्राणी को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
 उत्तर प्रदेश का महत्वपूर्ण संगम पंचनद जहां अति पावन पांच सदानीरा सरिताएं यहां की दुर्गम वादियों में कल-कल की मधुर संगीतमयी ध्वनि के साथ यमुना मइया के पावन जल में इस प्रकार समाहित हो जाती है जैसे सिद्ध साधक अपने अंतिम समय में परब्रह्म परमात्मा के अस्तित्व में विलीन हो जाता है।अनादि काल से यह पावन क्षेत्र ऋषि मुनियों की तपोस्थली तो रहा ही है स्वयं भगवान विष्णु ने यहां आराधना कर सुदर्शन चक्र प्राप्त किया । दैत्य कुल के रंभ , करम्भ नामक दो सगे भाईयों पंचनद के पवित्र जल में तपस्या कर अलौकिक शक्तियां प्राप्त की लेकिन देवराज इद्र ने पंचनद के जल में मगरमच्छ का रूप धारण कर तपस्यारत करम्भ दैत्य का वध कर दिया। शिव महापुराण के अनुसार संपूर्ण भारत में 108 शिव विग्रह हैं जिसमें पंचनद पर गिरीश्वर महादेव का स्व प्राकट्य विग्रह है । इन महादेव की उपासना प्रत्येक जीव को अकाल मृत्यु के भय से मुक्त कर मोक्ष प्रदान करती है । पुराणों में पंचनद एवं यहां मौजूद भगवान शिव के सैकड़ों आख्यान हैं । द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण द्वारा कालिया नाग को नथने के बाद जब गोकुल वृंदावन के यमुना क्षेत्र को छोड़कर समुद्र में जाने का आदेश दिया तो समुद्र जाने के रास्ते में पंचनद संगम जल में दीर्घकाल तक निवास कर भगवान गिरीश्वर की उपासना की।कालिया नाग के द्वारा निरंतर पूजित भगवान गिरीश्वर को कालीश्वर बाद में कालेश्वर के नाम से पुकार कर पूजा-अर्चना होती रही। अज्ञातवास के समय पांडवों ने पंचनद क्षेत्र में निवास कर भगवान कालेश्वर की उपासना करके कई दिव्यास्त्र एवं अमोघ शक्तियां प्राप्त की।आज भी अनेक साधु-संत इस क्षेत्र की दुर्गम कंदराओं में तपस्यारत रहते हुए पंचनद के पावन जल से पवित्र होकर भगवान कालेश्वर की साधना उपासना कर सिद्धियां प्राप्त करते हैं। प्रतिवर्ष कार्तिक की पूर्णिमा पर तो लाखों श्रद्धालु पवित्र जल में स्नान कर मोक्ष की कामना करते ही हैं लेकिन महाशिवरात्रि के अवसर पर पंचनद का पवित्र जल भरकर ले जा कर विभिन्न क्षेत्रों में स्थापित भगवान शिव के ग्रहों पर चढ़ाने की परंपरा में यहां हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ एकत्रित होती है एवं भगवान कालेश्वर की आराधना पूजा अर्चना करने वालों का तांता लगा रहता है। इस अवसर पर अनेक समाजसेवी लोग पर आने वाले व्रती (व्रत रखने वाले) उपासको साधकों एवं कांवरियों के लिए प्रसाद अल्पाहार के शिविर लगाकर आग्रह पूर्वक मिष्ठान, फल, सिंघाड़े का हलवा , उबले हुए तथा भुने हुए आलू और शकरकंद लेने का अनुरोध करते हैं।

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