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मंगलवार, 22 दिसंबर 2020

ऑनलाइन कक्षाओं से बाधित बच्चों ने आक्रोशित होकर कॉपी कूड़ादान में डालकर प्रदर्शन किया#Public Statement


(पब्लिक स्टेटमेंट न्यूज) 22 दिसंबर 2020 कानपुर।अखिल भारतीय पीड़ित अभिभावक महासंघ, बेजुबान फाउंडेशन के संयुक्त तत्वाधान में, सरसैया घाट चौराहे पर आरटीई एक्ट के तहत चयनित हुए पाल्यों का प्रवेश निजी विद्यालयों द्वारा ना किए जाने, ऑनलाइन कक्षाओं से बच्चों को बाधित करने से आक्रोशित होकर आदेश की कॉपी कूड़ादान में डालकर प्रदर्शन किया गया एवं महामहिम को संबोधित ज्ञापन मंडलायुक्त के माध्यम से भेजा । राकेश मिश्रा,अनिल जायसवाल, विवेक तिवारी द्वारा अपने संयुक्त वक्तव्य में बताया गया कि शिक्षा का अधिकार मौलिक अधिकार है एवं शिक्षा का अधिकार की धारा 12 (1) ग के तहत अलाभित एवं दुर्बल वर्ग के बालकों का चयन शासन द्वारा ड्रा उपरांत लॉटरी के माध्यम से निजी विद्यालयों में होना था परन्तु रसूखदार निजी विद्यालयों जैसे सेठ आनंदराम जयपुरिया स्कूल, विरेंद्र स्वरूप एजुकेशन सेंटर श्याम नगर एवं किदवई नगर, वीरेन स्वरूप पब्लिक स्कूल कैंट, सीलिंग हाउस स्कूल सिविल लाइंस व अमान्य विद्यालय बिल्लाबांग कंगारू किड्स सिविल लाइंस एवं द कंगारू किड्स, किदवई नगर आज तक गरीब व अलाभित अभिभावकों को टहला रहे है । दिसंबर माह में भी बच्चों का प्रवेश संभव नहीं हो सका । जिला अधिकारी  आलोक तिवारी, जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी पवन कुमार तिवारी से आख्या मांगते हैं और जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी निजी विद्यालयों को नोटिस पर नोटिस भेज रहे हैं परंतु शिक्षा के अधिकार एवं शासनादेशों के हनन के लिए निजी विद्यालयों पर अभियोग नहीं पंजीकृत करा रहे हैं । वहां उपस्थित प्रखर शिवम तिवारी ने कहा कि यदि सरकारी लोकसेवक न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल के उस आदेश का अनुपालन करें जिसमें उन्होंने कहा था कि सभी लोक सेवक अपने बच्चों को सरकारी प्राइमरी विद्यालयों में पढ़ाएं जिससे कि शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार हो सके उन्होंने आगे कहा कि यदि जिला अधिकारी एवं जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी के बच्चे सरकारी प्राइमरी विद्यालय में पढ़ेगे तो स्कूल के अध्यापकों में भय होगा कि जिला अधिकारी कहीं औचक निरीक्षण ना करें एवं जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी का नैतिक कर्तव्य भी है कि वह अपने बच्चों को सरकारी प्राइमरी विद्यालयों में पढ़ाये यदि वह अपने बच्चों को सरकारी प्राइमरी विद्यालयों में नहीं पढ़ाते तो यह राजद्रोह की श्रेणी में आना चाहिए एवं प्रश्न यह भी खड़ा होता है कि क्या सरकारी लोक सेवकों को अपनी ही संस्थाओं पर विश्वास नहीं है ।

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