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रविवार, 28 जनवरी 2018

#एक धर्म ऐसा भी है जहां त्याग-तपस्या पर नहीं बल्कि भोग और वासना पर जोर।

दुनिया में हजारों धर्म हैं और हर धर्म अपने कुछ खास नियमों पर जोर देता है। कोई त्याग, संयम और सेवा पर जोर देता है तो किसी में अहिंसा को सबसे बड़ी साधना बताया गया है। प्रत्येक धर्म मानवता और ईश्वर की बात करता है लेकिन एक धर्म ऐसा भी है जहां त्याग-तपस्या पर नहीं बल्कि भोग और वासना पर जोर दिया जाता है। पढ़ने में यह कुछ अजीब लगे पर यह सच है।

इस धर्म में लोग जब मन चाहे किसी के साथ संबंध बनाते हैं। यहां रिश्तों की मर्यादा नहीं सिखाई जाती है। इसके अलावा इसमें ईश्वर जैसी कोई अवधारणा नहीं है। यहां लोग शैतान को पूजते हैं और उससे दुनिया के सुख व साधन मांगते हैं। भारत में इसके अनुयायियों का कहीं जिक्र नहीं मिलता लेकिन पश्चिमी देशों में इसे मानने वालों की तादाद बढ़ती जा रही है।

शैतान की शक्ति पर विश्वास करने वाला यह धर्म रिश्तों की मर्यादा, पवित्रता जैसों शब्दों को नहीं मानता। यहां सिखाया जाता है भोग, वासना और शारीरिक सुख। इन लोगों का मानना है कि जो कुछ है यहीं है। जब तक इनसान जिंदा है उसे सबकुछ भोग लेना चाहिए क्योंकि मौत के बाद तो सबकुछ खत्म हो जाएगा तथा जीवन दोबारा नहीं मिलेगा।
यह धर्म साइंटोलॉजी के नाम से जाना जाता है। इसके अनुयायी हर चीज के पीछे तर्क से काम लेते हैं। उनका मानना है कि जो कुछ भी है उसके पीछे कोई तर्क अवश्य होना चाहिए। बिना विचारे किसी पर सहज ही विश्वास नहीं करना चाहिए। इस धर्म की शरण में आने के बाद लोग नैतिकता, पवित्रता जैसे शब्दों पर बात नहीं करते। यहां स्वर्ग-नरक जैसी कोई मान्यता नहीं है। इसलिए जब तक जीवन होता है, ये लोग खूब भोग-विलास करने पर जोर देते हैं।


पश्चिमी देशों में इस धर्म को मानने वाले लोग अलग-अलग पेशों में हैं। वे दिन में अपने काम में व्यस्त रहते हैं। शाम को निर्धारित स्थान पर इकट्ठे होकर अपनी धार्मिक रस्में पूरी करते हैं। वे खास तरह का लिबास पहनते हैं। अभी इन लोगों में अपनी पहचान छुपाने का चलन है। इस मुलाकात में अगर कोई किसी को पसंद आ जाता है तो वह उसके साथ सहमति से शारीरिक संबंध भी बना लेता है। इन लोगों में यह बुरा नहीं समझा जाता।

ये लोग किसी ईश्वर को नहीं मानते। जब इनका मन करता है खूब शराब पीते हैं। ये पहले से बने-बनाए नियम में बंधना पसंद नहीं करते। मान्यता है कि यह धर्म 1955 से अस्तित्व में आया है। इसका संस्थापक एल रॉन हबॉर्ड नामक शख्स था। वह हर चीज के पीछे तर्क को पसंद करता था। आज भले ही यह धर्म कुछ देशों में फैल गया है लेकिन इसके नियम किसी अजूबे से कम नहीं लगते। यह भविष्य में फैलेगा या वहीं तक सीमित रह जाएगा, इसका उत्तर भविष्य में ही छुपा है।

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