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शनिवार, 8 फ़रवरी 2020

आजादी के 70 साल बाद भी विकास से अछूता गांव खोडन#Public Statement



(विष्णु चंसौलिया की रिपोर्ट) 08/02/2020 गांव में नहीं आया कभी कोई अधिकारी वर्षा के 4 माह गांव बन जाता है टापू, उरई ।जालौन । आजाद देश का एक गांव ऐसा भी है जहां के निवासी वर्षा ऋतु के 4 माह अपने ही गांव में कैद होकर ईश्वर के सहारे हो जाते हैं । विकासखंड रामपुरा अंतर्गत ग्राम पंचायत नरौल का एक मजरा ग्राम खोलन 60-65 मकानों का पाल बिरादरी वाला 500 की जनसंख्या का छोटा सा गांव है । इस गांव की भौगोलिक स्थिति बड़ी विचित्र है ग्राम नरौल से दुर्गम रास्तों से लगभग 3 किलोमीटर चलकर मध्यप्रदेश से सटे इस गांव तक पहुंचा जा सकता है नरौल व खोडन बीच में एक नाला पड़ता है जो वर्षा ऋतु के 4 माह 6-7 फुट ऊंचाई तक पानी से भरा रहता है । शेष आठ माह नाला सूखा रहने पर उसे पार करके ग्राम खोडन पहुंचा जा सकता है वहां पहुंचने पर पता चलता है कि गांव तो उत्तर प्रदेश में है लेकिन ग्रामीणों के पशु मध्य प्रदेश में बंधे हैं ।वयोवृद्ध राधेश्याम पाल उम्र लगभग 80 वर्ष ने बताया आजादी से लेकर अब तक यहां कोई अधिकारी नहीं आया जिसे अपने गांव की समस्या बता सकें ।

 गेंदालाल पाल, कलम सिंह पाल, बलराम पाल ग्राम पंचायत सदस्य , विनोद, अजय, सुरेश, प्रेम सिंह, पातीराम आदि अनेक ग्रामीणों ने बताया कि हम लोगों को लगता ही नहीं है कि हम इसी देश प्रदेश जिला अथवा विकास खंड का हिस्सा है । वर्षा ऋतु में तो ऐसालगता है कि हम महासागर के बीच स्वतंत्र द्वीप हैं , जिसे अपने भाग्य के सहारे जीना एवं मरना है । मध्य प्रदेश की सीमा से सटा गांव वैसे तो उत्तर प्रदेश का हिस्सा है लेकिन इस गांव के लोगों की अधिकांश जमीन मध्य प्रदेश की सीमा में है। ग्रामीणों ने बताया की वर्षा रितु के समय ग्राम नरौल की ओर से आने वाले रास्ते में नाले पर बने चेकडैम के कारण 4 माह पानी भरा रहता है हमारा संपर्क अपने प्रदेश से कट जाता है। 

इन चार माह के लिए ग्रामीण पहले से ही अपनी जरूरत का सामान संग्रह करके रख लेते हैं लेकिन इन दिनों यदि कोई बीमार हो जाए तो उसे स्वयं भगवान के भरोसे ठीक होना पड़ेगा अथवा एडियां रगड़ रगड़ कर मरना पड़ेगा। शिक्षा की स्थिति यह है कक्षा 5 तक का विद्यालय यहां संचालित है शेष आगे की शिक्षा के लिए छात्रों को नरौल जूनियर हाई स्कूल जाना पड़ता है किंतु वर्षा ऋतु के 4 माह शिक्षा बाधित हो जाती है। पूरे गांव में कोई भी व्यक्ति स्नातक तक की शिक्षा प्राप्त नहीं कर सका है । आश्चर्यजनक तो यह है कि पूरे गांव में सिर्फ एक व्यक्ति सरकारी नौकरी कर रहा है वाकी युवक यही गांव में बेकार घूमते है अथवा दिल्ली, पंजाब, गुजरात ,मुंबई में पानीपुरी का धंधा अथवा मजदूरी के लिए चले गए हैं। इस गांव की युवकों की शादी करने के लिए  कोई लड़की वाला भी नहीं आता आता अधिकांश युवक अविवाहित हैं। यहां के लोगों का मुख्य धंधा खेती एवं पशुपालन है

।ग्रामीण भैसों का दूध आठ माह तक पास के ग्राम नरौल स्थित डेयरी पर ले जाते हैं शेष 4 माह का दूध गांव में ही रह जाता है जिस कारण यह धंधा भी नुकसानदायक साबित होता है। गत वर्ष ग्रामीणों ने चंदा से धन संग्रह करके एवं श्रमदान कर लगभग 500-600 मीटर तक एक कच्चा रास्ता तैयार किया जो मध्य प्रदेश के ग्राम लहचूरा से जुड़ता है , इस रास्ते से ग्रामीण मछंड अथवा मिहोना (मध्यप्रदेश) तक पहुंच जाते हैं । ग्रामीणों के अनुसार चुनाव के दौरान सभी दलों के नेता यहां आकर अनेक तरह के बड़े-बड़े वादे कर जाते हैं लेकिन चुनाव के बाद सब वादे भूल जाते हैं यदि ग्राम खोडन एवं नरौल के बीच पड़ने वाले नाला पर चार मीटर ऊंची पुलिया का निर्माण कर दो किलोमीटर का रास्ता बनवा दिया जाए तो संपूर्ण समस्या का समाधान हो सकता है।

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