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बुधवार, 31 जनवरी 2018

#कानपुर का जाम तो मेट्रो को कर देगा सुपरहिट, अडाणी समूह निवेश को तैयार।



कानपुर:- हम और आप भले ही रोज शहर के जाम को पानी पी-पी कर कोसते हों लेकिन कानपुर की मेट्रो परियोजना की कमान अपने हाथों में लेने के लिए तैयार अडाणी समूह को शहर का जाम बहुत पसंद आया। मेट्रो रूट पर भ्रमण के लिए निकले कंपनी के वरिष्ठ अधिकारियों की गाड़ी कई बार जाम मं फंसी लेकिन हर बार उनके मुंह से यही निकला कि इतने भारी ट्रैफिक में तो मेट्रो सुपरहिट हो जाएगी। केडीए उपाध्यक्ष के. विजयेंद्र पाण्डियन ने बताया कि अडाणी ग्रुप कानपुर मेट्रो परियोजना में सौ प्रतिशत निवेश करने को तैयार है। कुछ सुझावों पर डीपीआर में बदलाव किया जा सकता है। ग्रुप ने घरों से स्टेशनों को कनेक्ट करने के लिए डोर स्टेप कनेक्टिविटी को चुनौती बताया है मगर हम इसे पूरा करके दिखाएंगे। रेलवे, एनएचएआई व रोडवेज से अनुमति पहले ही ली जा चुकी है। रिलायंस जैसे समूह भी निवेश के लिए आ सकते हैं।


मंगलवार को अडाणी ग्रुप के सीईओ के साथ इस ग्रुप के डिप्टी जीएम संदीप पाण्डेय भी थे। ये दोनों कार से उपाध्यक्ष के साथ मेट्रो के रूट का भ्रमण करने निकले थे। खास बात यह है कि सीईओ की कार कई बार जाम में फंसी। सबसे पहले केडीए से आईआईटी जाते वक्त जाम से इनका सामना हुआ। लौटते वक्त कल्याणपुर क्रासिंग, रावतपुर, हैलट गोल मेडिकल चौराहा, बेनाझाबर रोड, चुन्नीगंज, परेड, बड़ा चौराहा, फूलबाग, नरौना चौराहा, बिरहाना रोड, घंटा घर, टाट मिल चौराहा, किदवईनगर और नौबस्ता तक जाम में इनके वाहन फंसे रहे। इतना भारी ट्रैफिक देख उन्होंने कहा-बाप रे, कानपुर में इतना भारी ट्रैफिक...वाकई मजा आ गया। मेट्रो तो हिट हो जाएगी।

वार्ता हुई फाइनल तो फिर बदलेगा डीपीआर


अगर शासन स्तर पर वार्ता फाइनल हो गई तो मेट्रो की डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट में फिर से बदलाव किया जाएगा। अडाणी ग्रुप के सुझाव पर ऐसा किए जाने के संकेत केडीए उपाध्यक्ष ने दिए हैं। उन्होंने बताया कि अडाणी ग्रुप का कहना है कि राजकीय पॉलीटेक्निक में जितनी बड़ी जमीन यार्ड के लिए ली जा रही है उतने की जरूरत नहीं है। कम में भी काम चलाया जा सकता है। इसके अलावा उन्होंने विशाखापट्टनम के वाईजैक मॉडल पर मेट्रो चलाने की मंशा जताई है। वाईजैक में 70 प्रतिशत हिस्सेदारी रिलायंस की है मगर अडाणी ग्रुप यहां 100 प्रतिशत हिस्सेदारी चाहता है। ऐसे में डीपीआर के मुताबिक केंद्र व राज्य सरकार द्वारा प्रस्तावित 5600 करोड़ के खर्च को भी शून्य किया जा सकता है। हालांकि सरकारी जमीन पर मालिकाना हक को लेकर नए सिरे से चर्चा हो सकती है। 

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