###यूपी के जनपद कानपुर देहात का एक ऐसा गांव है जहां गांव का नाम लेते ही आज भी वहां के लोग डर के मारे खौफजदा और दहशत में आकर कांप उठते हैं।###
कानपुर देहात:- यूपी के जनपद कानपुर देहात का एक ऐसा गांव है जहां गांव का नाम लेते ही आज भी वहां के लोग डर के मारे खौफजदा और दहशत में आकर कांप उठते हैं। इस गांव में पूर्व दस्यु सुंदरी एवं सांसद फूलन देवी ने 20 लोगों को एक लाइन में खड़ा करके दिन दहाड़े गोली मारकर हत्या कर दी थी। इस घटना से पूरे देश में सनसनी फैल गयी थी। इस घटना के बाद यूपी से लेकर केंद्र की राजनीति में भी भूचाल आ गया था। घटना के बाद उस समय कांग्रेस यूपी के मुख्यमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह को इस्तीफा देना पड़ा था, लेकिन 37 साल बीत जाने के बाद भी मामला अभी न्यायालय में चल रहा है। कई गवाहों और आरोपियों की मौत भी हो चुकी है। गांव के लोग उस फैसले के इंतजार में आस लगाए बैठे हैं, लेकिन वहां के लोगों को अगर मिल रही है तो सिर्फ तारीख पर तारीख। घटना के बाद से गांव की हालत भी बद से बदतर हो गयी है। विकास न होने पर वहां के लोग भुखमरी की कगार पर पहुंच गये हैं। इस गांव में नेता और अधिकारी अक्सर आते जाते रहते हैं और गांव में विकास कराने के लिये वह भी देते है तो सिर्फ तारीख पर तारीख।
मामला कानपुर देहात के बीहड़ इलाके में बसे बेहमई गांव का है, जहां 14 फरवरी 1981 को देश का बहुचर्चित बेहमई हत्या कांड हुआ था। शायद ये तारीख लोग कभी न भूल पाएंगे। जिसमें पूर्व दस्यु सुंदरी फूलन देवी ने गांव के बाहर 20 लोगों को एक लाइन में खड़ा करके गोली मारकर हत्या कर दी थी। इस घटना ने पूरे देश में कोहराम मचा दिया था। मामला अभी कोर्ट में चल रहा है। घटना को 37 साल बीत गये, कई गवाह और आरोपी जिनकी मौत हो चुकी है, लेकिन गांव के लोग आज भी उस फैसले के इंतजार में बैठे उस दिन का इंतजार कर रहे हैं। लेकिन कोर्ट द्वारा गांव के लोगों को फैसले की जगह सिर्फ तारीख पर तारीख मिल रही है। घटना के बाद बहुत से नेता और अधिकारी गांव गांव में आये थे। मृतकों की पत्नियों को विधवा पेंशन दिलाने की बात कही थी, साथ ही गांव के हालात देखकर गांव में विकास कराने के लिये कहा गया था।
37 सालो में बहुत सी सरकारे आयी और गयी लेकिन बेहमई गाँव का विकास आज तक नही हुआ है। बेहमई गाँव की हालत भी अब बद से बदतर हो गयी है, जहां न तो आने जाने के लिये अच्छी सड़क बनी है। बच्चों को पढ़ाने के लिये कोई अच्छा स्कूल नही है। गाँव में किसानों की आमदनी का मुख्य जरिया खेती है। तो पानी की सुविधा न होने से किसानों की हजारों बीघा जमीन सूखी पड़ी रहती है। घटना के बाद गाँव आये राजनाथ सिंह ने जालौन से कानपुर देहात को जोड़ने के लिये बेहमई में एक पुल बनाने की बात कही थी, जिससे बेहमई गाँव के लोगो को कुछ रोजगार के अवसर मिले। तो वह पुल भी बेहमई से 13 किलोमीटर दूर बनाया गया है, जो अभी तक चालू नही हुआ है। इस सारी समस्याओं से परेशान बेहमई गाँव के लोग अब भुखमरी की कगार पर है, जिनकी सुध लेने वाला कोई नही है। बेहमई गाँव का नाम सुनते ही अधिकारी और नेता आये दिन गाँव में आते रहते है और गांव के लोगो द्वारा विकास की बात कहने पर अधिकारियो और नेताओं द्वारा विकास कराने के नाम पर अब तक सिर्फ झूठे आश्वासन के अतिरिक्त कुछ नही मिलता है।
ग्रामीणों की माने तो इस काण्ड के बाद नेता और अधिकारी तो आये और गांव के विकास कराने के वादे भी मिले लेकिन धरातल पर कोई काम नहीं हुआ। वहीं इस सामूहिक हत्याकाण्ड से प्रभावित परिवार भी अभी तक सरकारी सहायता की आस लगाये बैठे है, लेकिन उन्हे किसी प्रकार की सरकारी सहायता नहीं मिल पा रही है उन्हे सिर्फ तारीख ही मिल रही है। वहीं गांव के प्रधान भी सरकारों, राजनीतिक पार्टियों और प्रशासनिक अधिकारियों की कार्यशैली से हताश हो गये हैं। गांव की स्थिति और ग्रामीणों के हाल से साफ तौर पर बेरूखी सामने आ रही हैं। विकास के नाम पर गांव और ग्रामीणों को तारीखे ही अभी तक मिली है।
शासन और प्रशासन की बेरूखी के हताश ग्रामीणों का साथ देने के लिए कानपुर देहात का वकीलों का एक समूह आगे आया हैं और गांव में विकास कार्य करवाने से लेकर ग्रामीणों की समस्याओं को दूर करने के लिए प्रभावी कदम उठाये जाने की बात कह रहे हैं। साथ ही शासन और प्रशासन की कार्यशैली पर सवालियां निशान लगा रहे हैं। अब देखना ये है कि ग्रामीणों का कितना दुख दूर होता है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें