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शुक्रवार, 9 फ़रवरी 2018

#यू.पी. की एक और बड़ी कम्पनी नीलामी की कगार पर।


कानपुर:- एक तरफ ‘इन्वेस्टर्स मीट’ के जरिए यूपी सरकार देशभर के उद्यमियों को प्रदेश में उद्योग लगाने के लिए मेहनत कर रही है तो दूसरी तरफ यूपी की सबसे बड़ी पोलिएस्टर यार्न फैक्ट्री नीलाम होने की कगार पर है। 45 करोड़ रुपए की फैक्ट्री महज 13 करोड़ में नीलाम होने जा रही है जबकि यह न सिर्फ चल रही बल्कि रोजगार भी दे रही है। अपनी फैक्ट्री बचाने के लिए उद्यमी बैंक और शासन से मदद के लिए चक्कर लगा रहे हैं लेकिन सिस्टम के आगे बेबस हैं।

रनिया स्थित एमीटेक टेक्सटाइल्स लिमिटेड के प्रबंध निदेशक अनिल पांडे हैं। टेक्सटाइल इंजीनियर अनिल ने 1992 में इसकी नींव रखी थी। एक लाख वर्गफुट में फैली फैक्ट्री में पोलिएस्टर फिलामेंट यार्न बनता है। कपड़े के सभी फैब्रिक इसी यार्न से तैयार होते हैं। इस उत्पाद की मांग का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि हर महीने तीन हजार टन की मांग अकेले यूपी में है लेकिन तैयार होता है सिर्फ 700 टन। 400 टन की क्षमता के साथ एमीटेक यूपी की सबसे बड़ी इकाई है। कंपनी का टर्नओवर करीब 60 करोड़ रुपए है।

ये है मामला

वर्ष 2013 तक कंपनी अच्छे से चल रही थी। उसी साल रनिया में टेक्सटाइल कंपनी ने अपना विस्तार किया। दस बीघा निजी जमीन लेकर फैक्ट्री डाली। बैंक ऑफ इंडिया ने 14 करोड़ रुपए लोन और 10 करोड़ वर्किंग कैपिटल लिमिट की मंजूरी दी। वर्ष 2014 में बैंक ने इसी लोन को संशोधित कर 11.78 करोड़ और 10 करोड़ वर्किंग कैपिटल के साथ मंजूर किया।

बैंक अपने मूलधन 11.78 करोड़ के एवज में उद्यमी से 13.10 करोड़ रुपए ले चुका है। इस वजह से कंपनी की वर्किंग कैपिटल खत्म हो गई और पूंजी न होने से संकट खड़ा हो गया। सख्त शर्तों की वजह से वर्ष 2015 में एकाउंट एनपीए हो गया। अनिल पांडेय ने मोरेटेरियम बढ़ाने का आवेदन किया। कॉस्ट ऑफ बिल्डिंग प्रोजेक्ट बढ़ाने का आवेदन दिया। फिर रीहैबिलेशन के 6 आवेदन दिए लेकिन बैंक ने सारे आवेदन खारिज कर दिए। इसी के साथ कंपनी को नीलामी के लिए रख दिया जबकि ये मामला डेब्ट रिकवरी ट्रिब्यूनल (डीआरटी) में चल रहा है। फैक्ट्री की कीमत करीब 45 करोड़ रुपए है जिसे बैंक 13 करोड़ में बेचने जा रहा है। 26 फरवरी को नीलामी है। फैक्ट्री आज भी चल रही है जिसमें 100 लोग काम कर रहे हैं। 100 टन प्रति माह का उत्पादन हो रहा है।

थोड़ी सी मदद की दरकार

अनिल पांडेय के मुताबिक औद्योगिक नीति और आरबीआई की गाइडलाइंस के मुताबिक इंडस्ट्री को सिक यूनिट घोषित किया जाए। इस संबंध में यूपी सरकार में भी स्पष्ट प्रावधान हैं। नियमों के मुताबिक बैंक 5 करोड़ की वर्किंग कैपिटल दे और बकाया रकम को बिना ब्याज के किस्त बनाकर कंपनी से ले। केवल इतनी मदद से ही फैक्ट्री दौड़ पड़ेगी।

साफ-सुधरे काम का नतीजा

एमीटेक टेक्सटाइल्स लिमिटेड के प्रबंध निदेशक अनिल पांडेय के मुताबिक मेरी फैक्ट्री इस समय संकट में है। 27 साल का साफ-सुथरा रिकॉर्ड है। न तो एक पैसे की टैक्स चोरी की, न 27 साल में एक पैसे का भी बैंक में डिफॉल्ट हुआ। 100 लोगों को रोजगार दे रहा हूं। फैक्ट्री बचाने के लिए भरसक प्रयास कर रहा हूं। निवेशक भी लाने का प्रयास कर रहा हूं लेकिन उससे पहले ही बैंक मेरी फैक्ट्री को नीलाम कर रहा है।

एनपीए का दबाव है

बैंक ऑफ इंडिया के जोनल मैनेजर मीना केतन दास का कहना है कि यूनिट ब्लॉक है। एनपीए होने की वजह से हम पर भी सरकार का दबाव है। बैंक कतई नहीं चाहता कि किसी उद्यमी की इकाई में तालाबंदी हो। बैंक का मकसद उद्यमिता को बढ़ावा देना है। हम हर तरह से मदद के लिए तैयार हैं।

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