(पब्लिक स्टेटमेंट न्यूज से दिग्विजय सिंह की रिपोर्ट) कानपुर 11 सितम्बर 2019. अगर आपका बेटा, भाई या घर का कोई सदस्य खुद में ही खोया रहता है, उसके स्वभाव में अचानक परिवर्तन आ गया है, झूठ बोलना, उधार लेना, चोरी करना या आसामाजिक गतिविधियों में लिप्त है तो आपको सावधान होने की जरूरत है। अच्छी तरह से पड़ताल कर लें, कहीं आपके घर पर 'कैप्टन गोगो' ने दस्तक तो नहीं दे दी है।
सूत्रों की माने तो देखने में मामूली सा कागज नजर आने वाला कैप्टन गोगो आजकल नशेडियों की पहली पसंद बन गया है। इस पेपर में ही युवा अब भांग, चरस, गांजा, अफीम और स्मैक भरकर पी रहे हैं। जिस प्रकार युवाओं की भीड़ इन कागजों को खरीद रही है, उससे साफ पता चलता है कि जिले में नशे के सौदागर अपनी पैठ जमा चुके हैं। उधर, पुलिस-प्रशासन इससे पूरी तरह से अनजान बना हुआ है। जिले में ‘गोगो’ का चलन बहुत तेज से चल रहा है। गोगो में गांजा और चरस मिलाकर सेवन कर रहे युवा अपनी जिंदगी के साथ भी खिलवाड़ कर रहे हैं। डाक्टरों के अनुसार गोगो पेपर में कई रासायनिक पदार्थ मिले होते हैं जो सेहत के लिये बेहद हानिकारक होते हैं। ऐसा खतरनाक गोगो पेपर स्कूल कालेजों के पास की पान की दुकानों में सहज ही उपलब्ध है।
इस पेपर को खरीदने वाले सबसे ज्यादा 14 साल के किशोर से लेकर 20 साल तक के युवा हैं। सूत्र इस बात की पुष्टि करते हैं कि पिछले कुछ समय से 14 से 20 साल तक के बीच नशे की लत का ग्राफ बढ़ा है। नशे में प्रयोग होने वाले इस बारीक कागज की जानकारी मिली तो हमारे संवाददाता ने कई दिनों तक शहर की प्रमुख पान की दुकानों पर नजर रखी। कागज की यह पैकिंग छिपाकर रखी जाती है, सिर्फ मांगने पर ही ग्राहक को यह सामान दिया जाता है। पहचान छिपाकर हमारे संवाददाता ने जब एक दुकानदार को भरोसे में लेकर उससे बात की तो दुकानदार ने कई ब्रांड के गोगो पेपर दिखाए। गोगो बहुत ही बारीक पारदर्शी कागज है। इसका पैक बाजार में आठ रुपये में मिलता है। पीले रंग की पैकिंग में बारीक कागजों की संख्या दो होती है। इसमें एक मोटे कागज की स्ट्रीप भी होती है। बारीक कागज को रोल करके भांग, चरस, स्मैक आदि को भरकर इसे सिगरेट का रूप दिया जाता है। मोटे कागज की स्ट्रिप को रोल करके फिल्टर बनाया जाता है। बारीक और मोटे कागज दोनों के सिरों पर लगी गोंद इसे आसानी से चिपका देती है। इसके अलावा मेड इन फ्रांस की ओसीबी वर्जिन पेपर पैकिंग भी उपलब्ध है। वर्जिन पेपर 10 से 15 रुपये में बेचा जाता है।
जनपद में इन दिनों किशोरों की कौन कहे छोटे-छोटे बच्चों में भी नशे की लत चिंता का विषय बनती जा रही है। छोटे-छोटे ये बच्चे भी मादक पदार्थों के आदी होते जा रहे हैं। स्कूलों के सामने खुली पान-चाय की दुकानों पर छात्रों की भीड़ इसी का मुख्य कारण है कि वहां आसानी से चरस, गांजा, भांग उपलब्ध है। चरस, गांजा, भांग आदि नशीली वस्तुएं जहां इसे खुले आम बढ़ावा दे रही हैं वहीं प्रशासनिक अमला इस बात को लेकर उदासीन बना हुआ है।
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