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मंगलवार, 1 अक्तूबर 2019

पुरातत्व महत्व के प्राचीन किला का ईशान भाग ध्वस्त#Public Statement


(विष्णु चंसौलिया की रिपोर्ट) 01/10/19 राजमाता इंटर कॉलेज के स्वामित्व में है किला का उत्तरी हिस्सा।

उरई।जालौन। पुरातत्व महत्व के प्राचीन किला का उत्तरी पूर्वी भाग जुम्मेदारों के द्वारा देखरेख के अभाव में आज भरभरा कर ध्वस्त हो गया। सेंगर क्षत्रियों की राजधानी जगम्मनपुर के 416 वर्ष प्राचीन राज महल के ईशान भाग का कोना श्री राजमाता बैशनी जू देव इंटर कॉलेज की प्रबंध कारिणी एवं प्रधानाचार्य की लापरवाही का शिकार होकर जमींदोज हो गया ।
ज्ञात हो कि विक्रमी संवत् 1660 अर्थात सन 1603  ईस्वी में  तत्कालीन महाराजा जगम्मनदेव के द्वारा किला का निर्माण पूर्ण हो जाने के बाद गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपने हाथ से मुख्य दरवाजे का बाद द्वितीय भाग में देहरी रोपित की थी । उसी समय से जगम्मनपुर का यह विशाल किला सेंगर राजवंश का निवास एवं सेंगर क्षत्रियों की आन बान शान का प्रतीक माना जाता है । वर्ष 1958 में तत्कालीन महाराजा वीरेंद्र शाह जूदेव ने जगम्मनपुर में शिक्षा प्रसार हेतु श्री लक्ष्मी नारायण शिक्षा प्रसार समिति का गठन कर 1959 में श्री राजमाता बैशनी जू देव नामक शिक्षण संस्थान की स्थापना की तथा किला का उत्तरी प्रवेश द्वार का संपूर्ण भाग उक्त संस्था को समर्पित कर दिया । 


राजा वीरेंद्र शाह एवं उनके बाद उत्तराधिकारी राजा राजेंद्र शाह तथा विद्यालय के तत्कालीन प्रधानाचार्य समय-समय पर इस विशाल प्राचीन किला के इस भाग की देखरेख कर यथोचित मरम्मत कराते रहे लेकिन वर्तमान में विद्यालय के प्रति अपनत्व की भावना का अभाव एवं प्रधानाचार्य द्वारा इस भवन की प्रति अनदेखी का परिणाम यह निकला कि आज मंगलवार की सुबह सेंगर क्षत्रियों की आन बान शान के प्रतीक जगम्मनपुर के विशाल राज महल के ईशान दिशा का भाग धराशाई हो गया । इस किला का यह भाग क्षतिग्रस्त होने से भले ही श्री राजमाता बैशनी जूदेव इंटर कॉलेज जगम्मनपुर तथा वर्तमान राजा साहब का व्यक्तिगत नुकसान हो लेकिन इस महल के बाहरी हिस्से के धराशाही होने से क्षेत्रीय  ग्रामीणों की जो भावनाएं आहत हुई हैं उसकी भरपाई कर पाना शायद संभव नहीं होगा।

उक्त संदर्भ में विद्यालय के प्रबंधक राजा सुकृत शाह से पूछने पर उन्होंने बताया कि संस्था की ओर से विद्यालय भवन के रखरखाव का भरशक प्रयत्न किया जाता है लेकिन विद्यालय भवन बड़ा होने से सभी कक्षाओं की मरम्मत का काम एक साथ नहीं कराया जा सकता । वर्ष 1917 -18 एवं वर्ष 18-19 में 4-4 लाख रुपए खर्च करके कई कक्षों का जीर्णोद्धार कराया गया और अभी भी लगभग दस कक्ष जीर्णशीर्ण होने के कारण उपयोग करने की स्थिति में नहीं है ।

 सरकार के द्वारा  वित्तीय सहायता प्राप्त ना हो पाने के कारण हम पूर्ण मनोयोग से प्राचीन भवनों का रखरखाव नहीं कर पा रहे  किंतु विद्यालय के आर्थिक बजट के अनुसार क्रमिक रूप से जीर्णोद्धार कराया जाएगा ।प्रबंधक राजा सुकृत शाह ने बताया हमारे विद्यालय के पास 4 एकड़ का ग्राउंड है वह पानी के कटाव के कारण 2 एकड़ का ही रह गया है इस संदर्भ में मैंने शासन से सहायता मांग कर बच्चों के खेलने का मैदान दुरुस्त कराने का प्रयास किया किंतु असफलता हाथ लगी।

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