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गुरुवार, 21 नवंबर 2019

बुन्देलखण्ड की एक और वीरांगना झलकारी बाई को इतिहास कभी नहीं भुला सकता#Public Statement

(विष्णु चंंसौलिया) 21/11/19 उरई ।झांसी की रानी वीरांगना लक्ष्मीबाई की सबसे विश्वसनीय हम शक्ल हम उम्र महिला सेना दुर्गा दल की सेनानायक तलवार बाजी घुड़सवारी और अचूक निशाने पर गोला फेंकने तथा युद्ध कला  में पारांगत वीरांगना झलकारी बाई का जन्म बुन्देलखण्ड के ही एक छोटे से गांव में २२नवम्बर १८३० को कोली परिवार में हुआ था। इनके पिता मूलचंद घर में ही कपडा़ बुनाई का काम करते थे।ओबीसी परिवार में जन्म लेने वाली झलकारी बाई को शिक्षा से वंचित रहना पडा़ ।इनकी बहादुरी की चर्चा जब सामने तब एक दिन झलकारी बाई घर में इस्तेमाल करने के लिए जंगल लकड़ी काटने गई वहां एक बाघ ने झलकारी बाई पर हमला कर दिया पर वो डरी नहीं और बाघ से भिड़ गई तथा अपनी कुल्हाड़ी से उसको मार गिराया।

जिसकी चर्चा झांसी के राज दरबार में भी पहुंची।तब झांसी की रानी ने झलकारी बाई को अपनी महिला सेना जिसका नाम दुर्गा दल था की प्रमुख बना दिया। झलकारी बाई का विवाह इनसे कम उम्र के युवा पूरन कोरी से हुआ था।बाद में पूरन को भी झांसी की सेना में भर्ती कराया तोप से गोला दागने की कला सिखाई गई और बहुत जल्द इसमें पूरन ने महारथ हासिल कर ली।रानी झांसी की हम शक्ल होने के चलते कई मोंकों पर अंग्रेजों को धोका देकर उनसे वार्ता करने या युद्ध करने के लिए झलकारी बाई आगे आती थीं।

महारानी लक्ष्मीबाई की सबसे विश्वसनीय साथी वीरांगना झलकारी बाई परछाई बनकर हमेशा उनके साथ रहती थी उनके  जीवन के अंतिम युद्ध ग्वालियर के मैदान में झांसी की रानी वीरांगना लक्ष्मीबाई  की रक्षा में अप्रैल १८५८ को वीरांगना झलकारी बाई ने रणभूमि में वीरगति को प्राप्त किया।आज २२नवम्बर उस वीरांगना के अवतरण दिवस पर कृतज्ञ राष्ट्र देश की आजादी की अमर शहीद वीरांगना झलकारी बाई को गर्व के साथ सत सत नमन करता है।

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