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मंगलवार, 1 जनवरी 2019

काबुल से शुरू होकर महान अभिनेता का सफ़र कनाडा मे समाप्त हो गया (कादर ख़ान)#public statement



मोहब्बत को समझना है तो प्यारे ख़ुद मोहब्बत कर, किनारे से कभी अंदाज़े तूफ़ान नहीं होता

संवाद कादर ख़ान 👆👆👆

हिंदी सिनेमा के मशहूर अभिनेता कादर ख़ान का कनाडा के एक अस्पताल में निधन हो गया है. उनके बेटे सरफ़राज़ ख़ान ने उनकी मौत की पुष्टि की है.


सरफ़राज़ ख़ान ने बीबीसी को बताया - "हमारे पिता अब हमारे बीच नहीं रहे."

81 वर्षीय कादर ख़ान एक दिग्गज अभिनेता होने के साथ-साथ डायलॉग और पटकथा लेखक भी थे.

उनकी सेहत पिछले कुछ दिनों से चर्चा में थी और सोशल मीडिया पर उनकी मौत की अफ़वाहें कई बार उड़ीं.


80 और 90 के दशक में कादर ख़ान गोविंदा और अनिल कपूर के साथ कई फ़िल्मों में दिखने वाले अभिनेता रहे.

साल 1973 में राजेश खन्ना की फ़िल्म दाग़ से बॉलीवुड में कदम रखने वाले कादर ख़ान ने 300 से ज़्यादा फ़िल्मों में काम किया.  



कब्रिस्तान मे तन्हा अकेले बैठ कें किया संवाद अदायगी का रियाज़ 
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क़ब्रिस्तान से एक्टिंग का सफ़र 

वो रात का वक़्त होता, बॉम्बे में घर के पास के यहूदी क्रबिस्तान में हर ओर अंधेरा और सन्नाटा. और एक बच्चा वहाँ बैठकर संवाद अदायगी का रियाज़ करता रहता..

एक रात यूँ ही रियाज़ जारी थी कि एक टॉर्च लाइट की रोशनी हुई और किसी ने पूछा कब्रिस्तान में क्या कर रहे हो?
बच्चा बोला मैं दिन में जो भी अच्छा पढ़ता हूँ रात में यहाँ आकर बोलता हूँ और रियाज़ करता हूँ. अशरफ़ ख़ान नाम के वो सज्जन फ़िल्मों में काम करते थे. उन्होंने पूछा नाटक में काम करोगे


फ़िल्म 'दिमाग का दही' के प्रमोशन के दौरान वो बच्चा था कादर ख़ान और वहां से शुरू हुआ उनका वो सफ़र जो दशकों तक फ़िल्मों में जारी रहा


जब कादर ख़ान ने बाद में 1977 में मुक़द्दर का सिकंदर लिखी तो इसमें एक अहम सीन है जहाँ बचपन में अमिताभ बच्चन रात को क़ब्रिस्तान में माँ के मरने पर रो रहा है.


वहाँ से गुज़र रहें एक फ़कीर ने  बोला था 👇👇👇👇


कादर ख़ान से कहता है,"इस फ़कीर की एक बात याद रखना. ज़िंदगी का सही लुत्फ उठाना है तो मौत से खेलो, सुख तो बेवफ़ा है चंद दिनों के लिए आता है और चला जाता है दुख तो अपना साथी है, अपने साथ रहता है, पोंछ दे आँसू. दुःख को अपना ले. तक़दीर तेरे क़दमों में होगी और तू मुक़द्दर का बादशाह होगा..."

डायलॉग किंग कादर ख़ान  कादर ख़ान ने 70 के दशक से डायलॉग लिखने से लेकर फ़िल्मों में एक्टिंग तक में ख़ूब नाम कमाया.


ख़ून पसीना, लवारिस, परवरिश, अमर अकबर एंथनी, नसीब, कुली- इन फ़िल्मों में पटकथा या डायलॉग लिखने वाले कादर ख़ान ने अमिताभ बच्चन के करियर को संवारने में बड़ा रोल निभाया.

हालांकि उनकी शुरुआती ज़िंदगी काफ़ी संघर्ष भरी रही.

कई इंटरव्यू में कादर ख़ान बता चुके हैं कि अफ़ग़ानिस्तान में उनके जन्म से पहले उनके तीन भाइयों की मौत हो चुकी थी जिसके बाद उनके माँ-बाप ने अफ़ग़ानिस्तान छोड़ भारत आने का फ़ैसला किया.

कॉलेज में एक बार नाटक प्रतियोगिता थी जहाँ नरेंदर बेदी और कामिनी कौशल जज थे. कादर ख़ान को बेस्ट एक्टर-लेखक का इनाम मिला और साथ ही एक फ़िल्म के लिए संवाद लिखने का मौक़ा भी मिला. पगार थी 1500 रुपए.
फ़िल्म थी 1972 में आई जवानी-दीवानी जो हिट हो गई और रफ़ूचक्कर जैसी फ़िल्में उन्हें मिलने लगी.

मनमोहन देसाई ने उनके डायलाग से खुश होके सोने की ब्रेसेलट उतार कर दी थी 👇👇👇

लेकिन कादर ख़ान की ज़िंदगी में बड़ा मोड़ तब आया जब 1974 में मनमोहन देसाई और राजेश खन्ना के साथ फ़िल्म रोटी में काम करने का मौक़ा मिला.
मनमोहन देसाई को कादर ख़ान पर ख़ास भरोसा नहीं था. मनमोहन देसाई अक्सर कहते, "तुम लोग शायरी तो अच्छी कर लेते हो पर मुझे चाहिए ऐसे डायलॉग जिस पर जनता ताली बजाए."
फिर क्या था, कादर ख़ान संवाद लिखकर लाए और मनमोहन देसाई को कादर ख़ान के डायलॉग इतने पसंद आए कि वो घर के अंदर गए, अपना तोशिबा टीवी, 21000 रुपए और ब्रेसलेट कादर ख़ान को वहीं के वहीं तोहफ़े में दे दिया
पहली बार कादर ख़ान को डायलॉग लिखने के लिए एक लाख से ज़्यादा की फ़ीस मिली. यहीं से शुरू हुआ मनमोहन देसाई, प्रकाश मेहरा और अमिताभ बच्चन के साथ उनका शानदार सफ़र.
कादर ख़ान की लिखी फ़िल्में और डायलॉग एक के बाद एक हिट होने लगे. अग्निपथ, शराबी, सत्ते पे सत्ता- अमिताभ के लिए एक से बढ़कर एक संवाद कादर ख़ान ने दिए 
साथ ही चल निकला कादर ख़ान की एक्टिंग का सफ़र भी.


1973 में फ़िल्म दाग में एक वकील के मामूली से रोल में कादर ख़ान दिखाए दिए. तो 1977 में पुलिस इंस्पेक्टर के छोटे से रोल में अमिताभ बच्चन के साथ.

इसके बाद तो ख़ून पसीना, शराबी, नसीब, क़ुर्बानी फ़िल्मों की झड़ी लग गई. विलेन के रूप में लोग उन्होंने पहचानने लगे.


अमिताभ बच्चन से थी गहरी दोस्ती 👇👇👇👇

अमिताभ के करियर में कादर ख़ान की अहम भूमिका रही. एक समय कादर ख़ान और अमिताभ बच्चन की गहरी दोस्ती थी.कॉमेडी वाला दौर👇👇👇👇 


1983 में कादर खान ने फ़िल्म हिम्मतवाला लिखी और अपने लिए कॉमेडी वाला रोल भी. तब तक वो विलेन वाले मोड़ से बाहर आना चाहते थे. वहाँ से उनकी लेखनी और एक्टिंग दोनों में एक बदलाव का सा दौर शुरू हो गया.

90 के दशक तक आते-आते कादर ख़ान ने लिखना कम कर दिया पर डेविड धवन-गोविंदा के साथ उनकी जोड़ी ख़ूब जमने लगी. लेकिन तब भी अपने डायलॉग वो ख़ुद ही लिखते.

बिना ख़ुद हँसे या आड़े-तिरछे मुँह बनाए बग़ैर दर्शकों को कैसे हँसाया जा सकता है ये गुर कादर ख़ान में था.

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